आँखें बंद करता हूँ की कोई ख्वाब आए
आँखें बंद करता हूँ की कोई ख्वाब आए ।
ख्वाब ऐसे की मीठी नींद ही आ जाए ।।
कुछ उमरते घुमरते ख्वाब आते भी हैं ।
सपनो की खिड़कियाँ खुलने को बेताब भी हैं ।।
खिड़कियाँ की चिटकिन्याँ खुलते खुलते अटक जाती हैं ।
कौन सी डायन है जो अंकुरित सपनो को निगल जाती हैं ।।
कल्पना के 'पर' अभी लगे तो थे,सपनो की लो टिमटिमाइ तो थी ।
ये कौन सा तिमिर है जो रोशन हुए घरोंदो पर छा जाती है ।।
आँखें बंद करता हूँ की कोई ख्वाब आए
मुस्कान की एक लकीर अभी खिंची थी चेहरे पर ।
खुशियों के कुछ ऒस गिरे थे आँखों पर ।।
सुनहरे आस की मखमली चादर अभी ओढ़ी थी हमने ।
की जिम्मेदारियों की आंधी ने जगा दिया नींद से हमे ।।
आँखें बंद करता हूँ की कोई ख्वाब आए !!
कृत्य - कुनाल
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