स्विस वाली चिड़ियाँ
बचपन में सुनी हुई कहानियों में अक्सर एक राक्षस का जिक्र आता था | कहानी कुछ इस तरह होती थी की राजा अपने पुरे सैन्य बल लेकर जाता और राक्षस पर हमला करता | राक्षस को भारी नुकसान पहुँचता पर फिर भी राजा उसे मार नहीं पाता | बार बार हमला करने के बाद राजा निराश हताश हो जाता | तमाम चाटुकार मंत्रियों के चाटने और एक से बढ़कर एक नृत्य देखने के बावजूद भी राजा का
मन निराशा के बादल से उबर नहीं पाता| ऐसे हालत में या तो किसी ऋषि का आगमन हिमालय से सीधे राज दरबार में होता या राजा किसी ऋषि के गुफ़ा में चला जाता और समस्या का निदान पूछता | ऋषि पहले उसे डाँट कर उसके अंहकार को चकनाचूर करते और राजा के बहुत विनती करने पर उसे बतलाते की राक्षस की प्राण आत्मा एक बहुत उच्चे पहाड़ पर स्तिथ एक बहुत उच्चे कटीली पेड़ पर बैठे एक छोटी सी नीली रंग की चिड़िया के अंदर है | अगर उस चिड़ियाँ को मार दिया जाए तो राक्षस खुद मर जाएगा | अच्छा हुआ मेनका गाँधी उस समय नहीं थी वरना राक्षस का मरना और मुश्किल हो जाता | शायद ऋषि को कुछ और उपाय बताना पड़ता |
ख़ैर राजा उपाय सुनकर खुशी से नाच उठता और ऋषि के चेलों के लिए एक फाइव स्टार आश्रम बनाने का आदेश देता | तुरंत सुरक्षा समिति की मीटिंग बुलाता और सुरक्षा सलाहकार को चिड़ियाँ मारने का आदेश दे देता | फिर 'न स जी ' कंमांडो के विशेष दस्ते को भेजा जाता चिड़ियाँ को मारने के लिए , बिना बरखा दत्त को बताये हुए और राजा इस तरह राक्षस पर पूर्णत : विजय प्राप्त कर लेता | हम बच्चे कहानी सुनकर बहुत खुश हो जाते |
मैंने भी बचपन में अपने दादा दादी से इस तरह की बहुत कहानी सुनी है | इस बचपन वाली कहानी को याद करने के पीछे एक कारण था और वो भी बचपन से जुड़ा था | मैं अक्सर सोचता की राजनेताओं की चमड़ी किसी विशेष पदार्थ से बनी होती है या इनके दिल के ऊपर लोहे का भारी कवच लगा होता है , की इतने आरोप ,लांक्षन , हाय और बद्दुआओं के बावज़ूद ये लम्बी उम्र तक ठाठ से जीते हैं | मैंने तमाम लोगो से सवाल पूछा ,खोज करने की कोशिश कि पर कुछ हाथ नहीं लगा | फिर एक दिन अचानक एक समाचार पढ़ा की 'अक्षय तृतीया ' के समय स्विट्ज़रलैंड जानी वाली फ्लाइट्स के टिकट के दाम बढ़ जाते हैं | थोड़ी ख़ोज बिन करने पर समझ आया की उस समय तमाम राजनेता और राशुकदार लोग स्विट्ज़रलैंड के स्विस बैंक जाते हैं पूजा अर्चना करने | स्विस बैंक में वो जादुई चिड़ियाँ - 'स्विस चिड़ियाँ ' अवस्थित है जिनके दर्शन को ये लोग जाते हैं | इन राजनेताओं की प्राण आत्मा उस राक्षस की तरह ही उस स्विस चिड़ियाँ में बस्ती है | इसलिए तो इंसान की तरह दिखने वाले इन राजनेतओं का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाता | कोई कोर्ट , कोई जाँच एजेंसी इनका बाल न बांका कर पाता है | ये स्विस चिड़िया बहुत गर्मी पैदा करती है इसलिए उसे भारत से काफी दूर बर्फ से ढककर रखा जाता है |उसकी सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जाता है | अगर स्विस चिड़िया के बारे में कोई अख़बार कोई खबर छाप दे तो तमाम 'राक्षस गण ' तड़प उठते हैं | इस तरह की खबर छापने वाले पर गाज गिर जाती है | सत्ता पर कब्ज़ा किसी भी पार्टी की हो पर स्विस चिड़िया की रक्षा में कोई कटौती नहीं आती | अब मुद्दा ये है की इस चिड़ियाँ पर हमला कौन करेगा और यहाँ राजा कौन है ?
न तो राजा को कोई फ़िक्र न मंत्री को | राजा निराश भी नहीं है की उसे ऋषि की सलाह की जरुरत पड़े | शायद ऋषि भी अपने आश्रम में निश्चिंत हैं | और बच्चे कहानी के अंत का इंतज़ार कर रहे हैं |
कृत्य - कुणाल
बचपन में सुनी हुई कहानियों में अक्सर एक राक्षस का जिक्र आता था | कहानी कुछ इस तरह होती थी की राजा अपने पुरे सैन्य बल लेकर जाता और राक्षस पर हमला करता | राक्षस को भारी नुकसान पहुँचता पर फिर भी राजा उसे मार नहीं पाता | बार बार हमला करने के बाद राजा निराश हताश हो जाता | तमाम चाटुकार मंत्रियों के चाटने और एक से बढ़कर एक नृत्य देखने के बावजूद भी राजा का
मन निराशा के बादल से उबर नहीं पाता| ऐसे हालत में या तो किसी ऋषि का आगमन हिमालय से सीधे राज दरबार में होता या राजा किसी ऋषि के गुफ़ा में चला जाता और समस्या का निदान पूछता | ऋषि पहले उसे डाँट कर उसके अंहकार को चकनाचूर करते और राजा के बहुत विनती करने पर उसे बतलाते की राक्षस की प्राण आत्मा एक बहुत उच्चे पहाड़ पर स्तिथ एक बहुत उच्चे कटीली पेड़ पर बैठे एक छोटी सी नीली रंग की चिड़िया के अंदर है | अगर उस चिड़ियाँ को मार दिया जाए तो राक्षस खुद मर जाएगा | अच्छा हुआ मेनका गाँधी उस समय नहीं थी वरना राक्षस का मरना और मुश्किल हो जाता | शायद ऋषि को कुछ और उपाय बताना पड़ता |
ख़ैर राजा उपाय सुनकर खुशी से नाच उठता और ऋषि के चेलों के लिए एक फाइव स्टार आश्रम बनाने का आदेश देता | तुरंत सुरक्षा समिति की मीटिंग बुलाता और सुरक्षा सलाहकार को चिड़ियाँ मारने का आदेश दे देता | फिर 'न स जी ' कंमांडो के विशेष दस्ते को भेजा जाता चिड़ियाँ को मारने के लिए , बिना बरखा दत्त को बताये हुए और राजा इस तरह राक्षस पर पूर्णत : विजय प्राप्त कर लेता | हम बच्चे कहानी सुनकर बहुत खुश हो जाते |
मैंने भी बचपन में अपने दादा दादी से इस तरह की बहुत कहानी सुनी है | इस बचपन वाली कहानी को याद करने के पीछे एक कारण था और वो भी बचपन से जुड़ा था | मैं अक्सर सोचता की राजनेताओं की चमड़ी किसी विशेष पदार्थ से बनी होती है या इनके दिल के ऊपर लोहे का भारी कवच लगा होता है , की इतने आरोप ,लांक्षन , हाय और बद्दुआओं के बावज़ूद ये लम्बी उम्र तक ठाठ से जीते हैं | मैंने तमाम लोगो से सवाल पूछा ,खोज करने की कोशिश कि पर कुछ हाथ नहीं लगा | फिर एक दिन अचानक एक समाचार पढ़ा की 'अक्षय तृतीया ' के समय स्विट्ज़रलैंड जानी वाली फ्लाइट्स के टिकट के दाम बढ़ जाते हैं | थोड़ी ख़ोज बिन करने पर समझ आया की उस समय तमाम राजनेता और राशुकदार लोग स्विट्ज़रलैंड के स्विस बैंक जाते हैं पूजा अर्चना करने | स्विस बैंक में वो जादुई चिड़ियाँ - 'स्विस चिड़ियाँ ' अवस्थित है जिनके दर्शन को ये लोग जाते हैं | इन राजनेताओं की प्राण आत्मा उस राक्षस की तरह ही उस स्विस चिड़ियाँ में बस्ती है | इसलिए तो इंसान की तरह दिखने वाले इन राजनेतओं का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाता | कोई कोर्ट , कोई जाँच एजेंसी इनका बाल न बांका कर पाता है | ये स्विस चिड़िया बहुत गर्मी पैदा करती है इसलिए उसे भारत से काफी दूर बर्फ से ढककर रखा जाता है |उसकी सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जाता है | अगर स्विस चिड़िया के बारे में कोई अख़बार कोई खबर छाप दे तो तमाम 'राक्षस गण ' तड़प उठते हैं | इस तरह की खबर छापने वाले पर गाज गिर जाती है | सत्ता पर कब्ज़ा किसी भी पार्टी की हो पर स्विस चिड़िया की रक्षा में कोई कटौती नहीं आती | अब मुद्दा ये है की इस चिड़ियाँ पर हमला कौन करेगा और यहाँ राजा कौन है ?
न तो राजा को कोई फ़िक्र न मंत्री को | राजा निराश भी नहीं है की उसे ऋषि की सलाह की जरुरत पड़े | शायद ऋषि भी अपने आश्रम में निश्चिंत हैं | और बच्चे कहानी के अंत का इंतज़ार कर रहे हैं |
कृत्य - कुणाल