Saturday, September 14, 2019

Plastic and Pakistan

Plastic and Pakistan

There is a growing concern about the use of plastic for the last few years. Similarly, there has been a sincere concern on the conduct of Pakistan as a responsible nation. There was a time when both these words were darling of the world’s most powerful and the richest. We can see plastic everywhere. Right from kitchen shelves, fridge to bathroom buckets. When I travelled to the western world for the first time, the first thing I observed was cleanliness and the second was the large scale use of plastic in everyday life.
I could see large scale use of plastic there as compared to developing nation like India. Milk in a plastic can, so is curd, cheese, butter, even a cucumber is wrapped in plastic and so is cauliflower. Back home in India, most of the people in rural or urban mostly use steel vessel to purchase milk. Vegetables like cauliflower, cucumber are not wrapped in plastic. I can see even packets of biscuits and potato chips have nested multiple plastic packs in the UK. In order to give customized handy products, the use of plastic is rampant everywhere. In short, thinking life without plastic looks next to the impossible.
If I go back in history, around 25 years back, very few people were using plastic water bottles while travelling by train or bus or for daily commutation. People used to refill their thermos at railway stations or bus stations. Water available there was considered quite good to drink and there were no reports of people falling sick after consuming such water. With the passing of time and advancement of modernity or overreach of the global economy, carrying thermos became old fashioned and a sign of being not prosperous. Instead, people started buying water bottles of Bisleri, Aquafina with pride and it became a social status to buy packaged water bottles. Celebrities, sultry models and their ads on television did the rest of the damage.
The influence of the corporate world and subsequent weakening of govt commitment to provide clean water to its citizens at appropriate junctures made the use of plastic bottles a need. It has become a menace now. Plastic pollution has reached the bottoms of oceans and to the core of solid glaciers of Siberia. The fragile world life in sea, earth and mountains are at risk. Per person, plastic waste in west is 3 times that of the


east. Thanks to the increased clamour on climate change in the western world and social media upheaval, people are turning back to the use of their thermos and started refilling it during travel. I have recently seen refill water joints in London zoo and London railway stations and was much happy to see it.
Any idea who is the biggest supplier of plastic as well as of Pakistan ?? it’s the red dragon. Most of the plastic toys, plastic kitchen wares, electronic parts, bathroom and garden parts are ‘made in china’ and so are the weapons, ammunition, missiles of Pakistan army and as well as its terrorists. At the time when India is sending advanced satellites to Mars and Moon for the welfare of mankind, Pakistan is too busy to launch its well-trained terrorists to India to create mayhem with weapons supplied by dragon king. The world is too much concerned about plastic and Pakistan nowadays. Its impact is huge on the dragon king’s economy. Restrictions on the use of plastic will shut down many factories of Guangzhou, China. Similarly a very poor and alienated Pakistan will impact China’s economy as China has got lots of vested interest in Pakistan for money or military.
But as there is a saying, ‘ there is time for everything’, the time has come to explore new alternatives of plastic if we want to save mother earth. Similarly, the time has come for the world to be very strict against Pakistan’s modus operandi to use terrorism to support its economy. As Pakistan is home to around 200 million people, it can not be wiped out but it’s very basic mentality on terrorism in the name of religion must be wiped out. Time for action on plastic and Pakistan which are bounded by a red dragon.

Sunday, August 25, 2019

स्विस वाली चिड़ियाँ

स्विस वाली चिड़ियाँ
बचपन में  सुनी हुई कहानियों में अक्सर एक राक्षस का जिक्र आता था | कहानी कुछ इस तरह होती थी की राजा अपने पुरे सैन्य बल लेकर जाता और राक्षस पर हमला करता | राक्षस को भारी नुकसान पहुँचता पर फिर भी राजा उसे मार नहीं पाता | बार बार हमला करने के बाद राजा निराश हताश हो जाता | तमाम चाटुकार मंत्रियों के चाटने और एक से बढ़कर एक नृत्य देखने के बावजूद भी राजा का

मन निराशा के बादल से उबर नहीं पाता| ऐसे हालत में या तो किसी ऋषि का आगमन हिमालय से सीधे राज दरबार में होता या राजा किसी ऋषि के गुफ़ा में चला जाता और समस्या का निदान पूछता | ऋषि पहले उसे डाँट कर उसके अंहकार को चकनाचूर करते और राजा के बहुत विनती करने पर उसे बतलाते की राक्षस की प्राण आत्मा एक बहुत उच्चे पहाड़ पर स्तिथ एक बहुत उच्चे कटीली पेड़ पर बैठे एक छोटी सी नीली रंग की चिड़िया के अंदर है | अगर उस चिड़ियाँ को मार दिया जाए तो राक्षस खुद मर जाएगा | अच्छा हुआ मेनका गाँधी उस समय नहीं थी वरना राक्षस का मरना और मुश्किल हो जाता | शायद ऋषि को कुछ और उपाय बताना पड़ता |
ख़ैर राजा उपाय सुनकर खुशी से नाच उठता और ऋषि के चेलों के लिए एक फाइव स्टार आश्रम बनाने का आदेश देता | तुरंत सुरक्षा समिति की मीटिंग बुलाता और सुरक्षा सलाहकार को चिड़ियाँ मारने का आदेश दे देता | फिर 'न स जी ' कंमांडो के  विशेष दस्ते को भेजा जाता चिड़ियाँ को मारने के लिए , बिना बरखा दत्त को बताये हुए और राजा इस तरह राक्षस पर पूर्णत : विजय प्राप्त कर लेता | हम बच्चे कहानी सुनकर बहुत खुश हो जाते |
मैंने भी बचपन में अपने दादा दादी से इस तरह की बहुत कहानी सुनी है | इस बचपन वाली कहानी को याद करने के पीछे एक कारण था और वो भी बचपन से जुड़ा था | मैं अक्सर सोचता की राजनेताओं की चमड़ी किसी विशेष पदार्थ से बनी होती है या इनके दिल के ऊपर लोहे का भारी कवच लगा होता है , की इतने आरोप ,लांक्षन , हाय और बद्दुआओं के बावज़ूद ये लम्बी उम्र तक ठाठ से जीते हैं | मैंने तमाम लोगो से सवाल पूछा ,खोज करने की कोशिश कि पर कुछ हाथ नहीं लगा | फिर एक दिन अचानक एक समाचार पढ़ा की 'अक्षय तृतीया ' के समय स्विट्ज़रलैंड जानी वाली फ्लाइट्स के टिकट के दाम बढ़ जाते हैं | थोड़ी ख़ोज बिन करने पर समझ आया की उस समय तमाम राजनेता और राशुकदार लोग स्विट्ज़रलैंड के स्विस बैंक जाते हैं पूजा अर्चना करने | स्विस बैंक में वो जादुई चिड़ियाँ - 'स्विस चिड़ियाँ ' अवस्थित है जिनके दर्शन को ये लोग जाते हैं | इन राजनेताओं की प्राण आत्मा उस राक्षस की तरह ही उस स्विस चिड़ियाँ में बस्ती है | इसलिए तो इंसान की तरह दिखने वाले इन राजनेतओं का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाता | कोई कोर्ट , कोई जाँच एजेंसी इनका बाल न बांका कर पाता है | ये स्विस चिड़िया बहुत गर्मी पैदा करती है इसलिए उसे भारत से काफी दूर बर्फ से ढककर रखा जाता है |उसकी सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जाता है | अगर स्विस चिड़िया के बारे में कोई अख़बार कोई खबर छाप दे तो तमाम 'राक्षस गण ' तड़प उठते हैं | इस तरह की खबर छापने वाले पर गाज गिर जाती है | सत्ता पर कब्ज़ा किसी भी पार्टी की हो पर स्विस चिड़िया की रक्षा में कोई कटौती नहीं आती | अब मुद्दा ये है की इस चिड़ियाँ पर हमला कौन करेगा और यहाँ राजा कौन है ?
न तो राजा को कोई फ़िक्र न मंत्री को | राजा निराश भी नहीं है की उसे ऋषि की सलाह की जरुरत पड़े | शायद ऋषि भी अपने आश्रम में निश्चिंत हैं | और बच्चे कहानी के अंत का इंतज़ार कर रहे हैं |
कृत्य  - कुणाल



Thursday, January 3, 2019

सांता की घर वापसी

सांता की घर वापसी


२४ दिसंबर की रात थी | सांता जापान होते हुए भारत में प्रवेश कर रहे थे | उनके हाथ में भारत से प्रकाशित होने वाले कुछ अख़बार के पन्ने थे जिससे वो यहाँ की ताज़ा जानकारी ले रहे  थे | चुकी भारत एक विशाल देश है , उन्होंने सिर्फ ३ राज्यों में घूमने का मन बनाया था | पहला राज्य था - पश्चिम बंगाल। सबसे पहले  वो हावड़ा  ब्रिज के पास उतरे | वहाँ उन्होंने अपने नियम के अनुसार कुछ बच्चों को चॉकलेट बांटा | वहीँ उनकी नज़र सफ़ेद साड़ी पहने एक नारी पर गयीं जो पेंट  ब्रश लेकर एक पेंटिंग बना रही थी | नज़दीक जाने पर उन्हें समझ आ गया की ये 'दीदी' ही हैं | उन्होंने दीदी को नमस्कार किया | दीदी भी उन्हें तुरंत पहचान गयी और उन्हें एक कुर्सी पर  बैठ्या |  दीदी ने सांता का कुशलछेम पूछा, फिर बोली ,' तुम सब को कुछ न कुछ देते हो इसलिए हम भी तुम्हे कुछ देगा |' फिर एक ड्रेस का पैकेट देते हुए बोली ,' सांता तुमने ये लाल ड्रेस क्यों पहना है ?  कहीं तुम मार्क्सिस्ट तो नहीं हो ? लो ये हरा ड्रेस पहन लो |वैसे भी हमारे राज्य में हरा रंग काफी लोकप्रिय है | ' सांता ने बिना कुछ कहे वो ड्रेस अपने पास रख लिया | दीदी फिर बोली ,'मैं तुम्हे एक और चीज दूंगी | ये लो मेरी शानदार पेंटिंग |' सांता दुविद्या में थे | पेंटिंग को ध्यान से देखकर बोले  ,' दीदी ये आप किसी कलाकार या बड़े व्यापारी को देना , मुझे ये समझ में नहीं आता | ' दीदी को गुस्सा आ गया पर सेक्युलर होने के नाते वो शांत रही | फिर बोली ,'सांता हमारे यहाँ का संदेश खाओ | ये बंगाल का प्यार है | ' सांता फिर दुविद्या में आ गए | थोड़ी  हिचकिचाहट के साथ बोले ,' मीठा देना और बाँटना तो मेरा काम है| आप क्यों मीठा खिला रही है ? डॉक्टर ने मेरे बढ़ते वज़न को देखकर मीठा नहीं खाने को बोला है | ये आप किसी गरीब या छोटे बच्चे को दे दीजिये | ' अब दीदी का पारा चढ़ चूका था |पेंट और ब्रश फेंककर  बोली ,' सांता तेरा दिमाग ख़राब है जो दीदी का दिया हुआ मिठाई नहीं खा रहा | भाग जाओ यहाँ से |  नहीं तो तुम यहाँ दंगा फैलाएगा | अब कभी यहाँ मत आना | ' सांता जान बचा कर भागे वहां से |
उनका अगला राज्य था उत्तर प्रदेश | दीदी के व्यवहार ने सांता को थोड़ा चौकना कर दिया | वो उत्तर प्रदेश की जानकारी इकट्ठा करने लगे | उन्होंने किसी से केसरिया ड्रेस ले लिया और चॉकलेट की जग़ह लड्डू रख लिया | उन्होंने सोचा दीदी तो खुद सफ़ेद साड़ी पहनती है फिर भी मुझे हरा ड्रेस पहना रही थी फिर यहाँ का तो मुखिया खुद केसरिया पहनता है , इसलिए केसरिया ड्रेस पहन लेने में ही भलाई है | सांता ने यहाँ हनुमान की भी चर्चा काफ़ी सुनी थी इसलिए उन्होंने चॉकलेट की जग़ह लड्डू रख लिया | सांता सबसे पहले अयोध्या सरयू नदी के घाट पर पहुँचे | सुबह होने वाली ही थी | उन्होंने अपने थैले से लड्डू निकाल कर बाँटना शुरू ही किया था की उनकी नज़र केसरिया वस्त्र पहने कुंडलधारी केश रहित छोटे कद के इंसान पर पड़ी | उन्हें थोड़ा संदेह हुआ की योगी हैं की नहीं पर आसपास बंदूकधारी कमांडो और ३-४ गाये को देखकर समझ गए की ये तो राज्य के मुखिया ही हैं | सांता भागकर गए उनके पास | उन्हें लगा केसरिया वस्त्र देख 'योगी ' जी खुश होंगे | हुआ भी वैसा ही | कमांडो के रोकने के बावजूद भी योगी जी ने उन्हें अंदर बुला लिया | योगी बोले,' आओ सांता , आसान पर विराजो | देखो, कितना अच्छा लग रहा है ये केसरिया ड्रेस तुम्हारे ऊपर | तुम्हारे रुझान को देख मैंने तुम्हारे लिए कुछ स्कीम सोचा है | मेरे हिसाब से तुम 'घर वापसी' कर लो | जिस जाति में घर वापसी करना चाहो हो जायेगा | आजकल मैं जाति प्रमाण पत्र भी तुरंत दे देता हूँ चाहे भगवान ही क्यों न हो |' सांता काफ़ी उलझन में पड़ गए | थोड़ा हिम्मत करके बोले ,' योगी जी, मेरा घर तो यहाँ है ही नहीं , मैं तो ठण्ड में कुछ समय के लिए यहाँ आ जाता हूँ | और देखिये मैं इस बार लड्डू लेकर आया हूँ | मुझे घर वापसी के झमेले में न फँसाये | ' योगी जी की आँखें क्रोध से लाल हो गयीं पर सांता के केसरिया रंग और लड्डू को देखकर शांत हो गए | कुछ सोचकर फिर बोले ,' अच्छा सांता एक काम करो,कम से कम अपने नाम की ही वापसी कर लो | अपना नाम 'संत कैलाश' कर लो | तुम्हारी दाढ़ी भी संतो की तरह ही है | यहीं सरयू के घाट पर एक कुटिया बनवा देता हूँ | अच्छे संत बन जाओगे तो एक ५१ फ़ीट की स्टेचू भी बनवा दूंगा | तुम वाजपेयी जी के जन्मदिवस पर आते हो इसलिए उन्ही के स्टेचू के बग़ल में तुम्हारा स्टेचू रहेगा | बोलो क्या कहते हो ?' योगी जी मुस्कुरा कर बोले | सांता फिर दुविधा में पर गए | थोड़ा सोच कर बोले ,' योगी जी, पूरे संसार में लोग मुझे सांता क्लॉस के नाम से जानता है | बच्चे इसी नाम से मुझे बुलाते हैं और मुझे अच्छा लगता है | मुझे माफ़ कीजिये | ' अब योगी जी का चेहरा , कान और यहाँ तक की कान के कुण्डल भी क्रोध से लाल हो गए थे | बोले ,' सांता तुम बहुत जिद्दी हो | तुम्हारा स्नेह हिंदुत्व के लिए नहीं है | तुरंत निकल जाओ हमारे प्रदेश से | 'ये कहकर योगी जी गाय के पीठ को सहलाने लगे |  सांता समझ गए ,आगे कुछ बोलने से फायदा नहीं है और थोड़ा और रुकने पर एनकाउंटर की सम्भावना भी हो सकती है | वो निकल गए तीसरे  और अपने आख़िरी राज्य की तरफ |
वो पहुँच गए देश की राजधानी | सांता थोड़ा अच्छा महसूस कर रहे थे | उन्होंने पढ़ा था की दिल्ली का मुखिया पढ़ा लिखा है और काफी मेहनत कर रहा है | सुबह लगभग हो चुकी थी फिर भी कोहरे के कारण अँधेरा छाया ही हुआ था | तभी सांता को बिजली के पोल पे चढ़ा एक आदमी दिखाई दिया जो चश्मा लगाया हुआ था , नाक पर मास्क और गर्दन में मफलर  बाँधे हुए था | वो पोल पर कुछ बाँध रहा था | सांता ने उसे आवाज़ दिया | उस आदमी ने टोर्च मरकर देखा तो सांता दिख गए | आदमी नीचे उतर आया और सांता से हाथ मिलाने लगा | ' आओ जी सांता जी,कैसे हो आप ? दिल्ली में आपका स्वागत है | आपने नाक पर मास्क नहीं बाँधा ? कोई नहीं जी कोई नहीं | मैं अभी मनीष को कहता हूँ आपके लिए मास्क ले आएगा | ' मनीष का नाम आते ही सांता समझ गए की ये तो अरविन्द जी ही हैं | सांता बोले ,' अरे नहीं अरविन्द जी , इसकी कोई जरुरत नहीं है | पर आप इस पोल पर क्या कर रहे थे ?' अरविन्द जी बोले ,' अरे वाह सांता जी ! आप तो मुझे पहचान गए | इससे पता चलता है की हमारी सरकार के चर्चे रोम तक हो रहे हैं | वाह ! ख़ैर वो मैं ऊपर कैमरा लगा रहा था और मनीष स्क्रीन पर कैमरा को चेक करने गया था | सांता जी , हम दिल्ली और पूरे देश और पूरे दुनिया के लिए बहुत काम कर रहे हैं | अगर जनता ने चाहा तो अगले  ५ साल में १५० देशों में आम आदमी पार्टी की सरकार बन जाएगी | आपको यकीन न हो तो मनीष से पूछ लेना | ' सांता थोड़े अचरज में पर गए,१५० देशों में सरकार | फिर सोचा की इनका दोष नहीं है ,दिल्ली की हवा ही ऐसी है | सांता बोले ,' अच्छा अरविन्द जी, मैं चलता हूँ | आपसे मिलकर अच्छा लगा| ' अरविन्द जी भड़क गए , बोले ' अरे सांता जी , अभी अभी तो आप आये हो , कम से कम एक बार मोहल्ला क्लिनिक तो हो आओ | मुफ़्त में इलाज़ करवा लो , मुफ्त में टेस्ट करवा लो , मुफ़्त में दवा ले लो | मनीष आपको ले जायेगा क्लिनिक | सांता परेशान हो गए और बोले ,' अरे नहीं , मुझे कोई बीमारी नही है | मुझे नहीं करवाना इलाज़ | ' अरविन्द जी को गुस्सा आ गया | बोले ,' अरे ये क्या बात हुई |  अगर इलाज़ नहीं करवाना तो आपको तीर्थ यात्रा करना पड़ेगा | आपको मुफ्त में वैष्णो देवी, अमृतसर ,अजमेर की यात्रा करवाएंगे | वैसे भी आप सीनियर सिटीजन हो | आप चिंता मत करो , मनीष आपको बस से ले जायेगा | वो तो मोदी जी हमें काम नहीं करने देते , न तो आम आदमी की सरकार दिल्ली को रोम बना देती | ' सांता अब काफी परेशां हो गए थे , फिर बोले , ' अरविन्द जी , मुझे अब लेट हो रहा है , मैं चलता हूँ | मुझे जल्दी है | ' अरविन्द जी का पारा चढ़ चूका था | मफलर को ढीला करके बोले ,' सांता तुम तो बहुत जिद्दी हो | तुम्हे दिल्ली की परवाह नहीं है | मुझे तो लगता है तुम्हे  मोदीजी ने भेजा है हम पर नज़र रखने के लिए | तुम सब मिले हुए हो जी | सब मिले हुए जी | मैं अभी मनीष से कहकर तुम्हे पकड़वा दूंगा | ' ये कहकर अरविंद जी मनीष को कॉल करने लगे | सांता समझ गए की इससे पहले मनीष आये यहाँ से निकल लेना चाहिए | मनीष ने शायद अपना मोबाइल स्विच ऑफ कर रखा था |