कर्ण-कृष्ण का द्वन्द
आज अकस्मात एक सवाल ने मन में खलबली मचा दी | प्रसंग महाभारत के युद्ध का ही है | कृष्ण ने पार्थ को युद्ध के लिए हर तरीके से तैयार करने का काम किया | पार्थ सर्वश्रेष्ठ धनुर्धरों में से एक था फिर भी जिनके खिलाफ उसे लड़ना था, उन से लड़ना बहुत ही टेढ़ी खीर थी | इसलिए कृष्ण ने पार्थ को तपस्या और अलग अलग सिद्धियां भी अर्जित करने को कहा | इन तमाम रण कौशल से लैश होने के बावजूद भी कृष्ण को पता था की युद्ध में जीत सुनिश्चित नहीं है | इसलिए खुद को मजबूत करने के साथ दुश्मन को कमजोर करना भी जरुरी था | भीष्म ,द्रोण के समाने पांडवों को नहीं मारने की बाध्यता थी | पर कर्ण इस बाध्यता से नहीं बँधा था | कर्ण के पास अपने आप को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर सिद्ध करने और दुर्योधन के एहसान को उतारने का ये स्वर्णिम अवसर था | कर्ण का निश्चय , उसकी तैयारी और क्षमता कृष्ण के लिए चिंता का विषय था | उन्होंने कर्ण को पांडव पक्ष में लाने के लिए कुंती,इंद्र और स्वयं प्रयास किए पर कर्ण दुर्योधन के एहसान को झुठला नहीं सका |
कर्ण - पार्थ युद्ध में कर्ण का पलरा इंद्र के वज्र के कारण अभी भी भारी था | कृष्ण को इस का एहसास था | वज्र के प्रभाव को ख़त्म करने के लिए घटोत्कक्ष को युद्ध में उतारा गया | कर्ण को बाध्य होकर वज्र घटोत्कच पर चलाना पड़ गया और घटोत्कक्ष वीरगति को प्राप्त हुआ | वज्र का इस्तेमाल बस एक बार हो सकता था और पार्थ के जीवन को सुरक्षित कर लिया गया | यही घटना जेहन में कुछ सवाल खड़े करते हैं | क्यों घटोत्कक्ष को अपने जीवन का बलिदान देना पड़ा ? उसके जीवित रहते हुए भी पांडवों की जीत सुनिश्चित थी , हाँ पार्थ का जीवन जरूर संकट में था | कृष्ण धर्म के पक्ष में थे और धर्म की जीत उन्हें सुनिश्चित करनी ही थी | पर कृष्ण को पार्थ का जीवन घटोत्कक्ष से जाएदा प्रिये क्यों था ? क्या कृष्ण को पांडवों की जीत के साथ पाँच पांडवों के जीवन को भी सुनिश्चित करना था ? पार्थ का जीवन शायद इसलिए की प्रत्यक्ष रूप से उसके साथ अन्याय हुआ था और जीत के बाद जीवित रहकर उसका स्वाद चखना ही असल न्याय था | पार्थ का जीवन शायद इसलिए भी की भगवन स्वंय जिसके रथ को हाँक रहे हो और उसकी पूरी आस्था भगवन में हो और उसके जीवन को ही न बचा सके तो ये बात भी सवाल खड़ा करता है | पार्थ का जीवन शायद इसलिए भी की की बलिदान देकर घटोत्कक्ष ने समस्त राक्षस जाति को गौरवन्वित किया जो शायद उसके जीवित रहने से संभव नहीं था | इससे ये भी ज्ञात होता है की धर्म की जीत के साथ साथ किसके जीवन को सुनिश्चित करना हो ये भी धर्म परिभाषित करता है | महाभारत के युद्ध में पुत्र का बलिदान भी दिया गया | इसके तमाम उत्तर हो सकते हैं और धर्म और ज्ञान के स्वामी इसकी विवेचना अलग अलग ढंग से कर सकते हैं | सोच , संशय और सवालों के बीच तैरता मानस !!