इंसानियत की भी कुछ लाज रख
एक नासमझ ने मंदिर पर पत्थर फेंका ,
और सारे समझदार लड़ पड़े ।
एक चिंगारी न सुलगी , यहाँ अँगारे भड़क उठे ॥
धर्म के कुछ ठेकेदार इधर थे तो कुछ उधर भी ,
मरने वाले कुछ तिलक वाले थे तो कुछ ताबीज़ वाले भी ।
झगड़े की नींव रखने वाला कोई शीश महल वाला था ,
पर घर जला उसका जिसका झोपड़ा बेहाल था ।।
मुश्किल है लबो पर शहद की जुम्बिश
पर जहरीले तीर तो न रख ।
माना खुदा बड़ी चीज़ है बन्दे ,
पर इंसानियत की भी कुछ लाज रख ॥
नोट -- कृति धर्मपरायण ब्राह्मण द्वारा